स्वर एक निश्चित ऊँचाई की आवाज़ का नाम है। यह कर्ण मधुर आनंददायी होता है। जिसमें स्थिरता होनी चाहिये, जिसे कुछ देर सुनने पर, मन में आनंद की लहर पैदा होनी चाहिये। यह अनुभूति की वस्तु है। भारतीय संगीत में एक स्वर की उँचाई से ठीक दुगुनी उँचाई के स्वर के बीच 22 संगीतोपयोगि नाद हैं जिन्हें "श्रुति" कहा गया है। इन्हीं दोनो उँचाईयों के बीच निश्चित श्रुतियों पर सात शुद्ध स्वर विद्यमान हैं जिन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि, से जाना जाता है और जिनके नाम क्रमश: षडज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद हैं। इसे सप्तक के नाम से जाना जाता है।
प्रायः गायक अथवा गायिका के आवाज कि रेंज तीन सप्तक तक सीमित होती है। जिसमें गायक के प्राकृतिक सप्तक को मध्य सप्तक कहते है। मध्य सप्तक से कम फ्रिक्वेंसी वाले सप्तक को मंद्र सप्तक एवम उँची फ्रिक्वेंसी वाले सप्तक को तार सप्तक कहते है।
उपरोक्त सात शुद्ध स्वरों में 'सा' और 'प' अचल स्वर हैं पर बाकी 5 स्वर अपनी जगह से हटते हैं, जिनमें रे, ग, ध, नि ये चार स्वर नीचे की तरफ हटते हैं और उन्हे कोमल स्वर कहते हैं। इसी तरह मध्यम ऊपर की तरफ हटता है और उसे तीव्र स्वर कहते हैं। इस तरह एक सप्तक में कोमल, शुद्ध और तीव्र स्वर मिलाकर कुल 12 स्वर होते हैं। 12 स्वरों के नाम इस प्रकार हैं - सा, रे कोमल, रे शुद्ध, ग कोमल, ग शुद्ध, म शुद्ध, म तीव्र, पंचम, ध कोमल, ध शुद्ध, नि कोमल और नि शुद्ध।
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