नाद

आवाज अथवा ध्वनि विशेष को नाद कहते हैं। दो पदार्थों के परस्पर टकराने से नाद या आवाज उत्पन्न होती है। इसके दो भेद हैं - एक, जो नाद क्षणिक हो, लहर शून्य अथवा जड़ हो, तो वह आवाज संगीत के लिये अनुपयोगी तथा स्वर शून्य रहेगी। लेकिन दूसरे प्रकार की आवाज कुछ देर तक वायुमंडल पर अपना मधुर प्रभाव डालती है। वह सस्वर होने के कारण संगीत के लिये उपयोगी है।

नाद के दो प्रकार हैं, अनहद नाद और लौकिक नाद। ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जिसने संगीत रूपी दैवी शक्ति को न सुना हो। नदियों की मधुर कलकल ध्वनि, झरनों की झरझर, पक्षियों का कूजन किसने नहीं सुना है। प्रकृति प्रदत्त जो नाद लहरी उत्पन्न होती है, वह अनहद नाद का स्वरूप है जो कि प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन जो नाद स्वर लहरी, दो वस्तुओं के परस्पर घर्षण से अथवा टकराने से पैदा होती है उसे लौकिक नाद कहते हैं।

वातावरण पर अपने नाद को बिखेरने के लिये, बाह्य हवा पर कंठ के अँदर से उत्पन्न होने वाली वजनदार हवा जब परस्पर टकराती है, उसी समय कंठ स्थित 'स्वर तंतु' (Vocal Cords) नाद पैदा करते हैं। अत: मानव प्राणी द्वारा निर्मित आवाज लौकिक है।

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